विदेश यात्रा
यदि आप ज्योतिष विधा के अंतर्गत जन्म कुंडली के भावों की थोड़ी भी जानकारी रखते हैं तो आप जल्द ही यह विश्लेषण समझ जाएंगे। ज्योतिथष शास्त्रा के अनुसार वितदेश यात्रा की स्िवि तिग को जातक की जन्म कुंडली के पाप ग्रहों यानी शनि, राहु, केतु और मंगल से जाना जाता है।कुंडली में चौथे और बारहवें घर या उनके स्वामियों का संबंध यानी उस घर में स्थिबत राशिल के स्वामी से विदेश में स्थायी रूप से रहने का सबसे बड़ा योग बनता है। इस योग के साथ चतुर्थ भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव आवश्यक हैl यानी उस घर में कोई भी पाप ग्रह स्ि्थ त हो या उसकी दृष्टि हो।
लेकिन इन सभी भावों और उनमें स्थित ग्रहों के कैसे प्रभाव से विदेश यात्रा का कौन सा कारण उत्पन्न होता है, यह जानना चाहेंगे आप? अर्थात आप नौकरी के लिए, व्यवसाय के लिए, हमेशा बस जाने के लिए या केवल घूमने के लिए विदेश जाएंगे, यह कैसे पता चलेगा? आगे की स्लाइड्स में जानिए..
ज्योतिषियों के अनुसार यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के सप्तम और बाहरवें भाव या उनके स्वामियों का परस्पर सम्बन्ध हो, तो जातक विवाह के बाद विदेश जाता है।विवाह के बाद विदेश जाने के भी दो तरीके ज्योतिषियों ने बताए हैं, जैसे कि या तो वह व्यक्ति विदेश में शादी करके या किसी विदेशी मूल के व्यक्ति से शादी करने के बाद वीजा पाकर विदेश में सेटेल हो जाता है।
यदि जातक की जन्म कुंडली में स्थित पंचम और बाहरवें भाव के साथ उनके स्वामियों का संबंध बनता है तो, वह जातक शिक्षा के लिए विदेश जाने का योग पाता है। लेकिन कितने लंबे समय के लिए, यह कहना कठिन होता है।
परन्तु यदि जातक की कुंडली के दसवें और बारहवें भाव या उनके स्वामियों का संबंध हो तो व्यक्तिक को विदेश से व्यापार या नौकरी के अवसर प्राप्त होते हैं।हो सकता है कि व्यक्ति पहले से ही विदेश में पढ़ाई कर रहा हो, और वहीं से ही उसे नौकरी का ऑफर मिल जाए। लेकिन यदि यह योग नहीं है तो वह कितनी भी कोशिश कर ले उसे नौकरी या व्यवसाय करने के लिए वापस अपने देश आना ही पड़ता है।
जातक की जन्म कुंडली में स्थित चतुर्थ और नवम भाव का संबंध जातक को पिता के व्यापार के कारण या पिता के धन की सहायता से विदेश ले जा सकता है। यहां कई प्रकार की परिस्थितियां बन सकती हैं।या तो जातक पिता के धन के उपयोग से पढ़ाई के लिए विदेश जा सकता है, घूमने के लिए या फिर कोई अन्य कारण भी हो सकता है। लेकिन ऐसा ही एक और योग भी बनता है, जिसकी सहायता से जातक अकेला नहीं, बल्कि अपने पिता के साथ ही विदेश जाता है।
जन्म कुंडली में यदि नवम और बारहवें भाव का संबंध बन रहा हो तो व्यक्तिा को व्यापार या धार्मिक यात्रा के लिए विदेश ले जा सकता है। इस योग में जातक का पिता भी विदेश व्यापार या धार्मिक वृतियों से सम्बन्ध रखता है।
जन्म कुंडली में यदि नवम और बारहवें भाव का संबंध बन रहा हो तो व्यक्तिा को व्यापार या धार्मिक यात्रा के लिए विदेश ले जा सकता है। इस योग में जातक का पिता भी विदेश व्यापार या धार्मिक वृतियों से सम्बन्ध रखता है।
पिछले बताए गए सभी योगों के अलावा कुछ योग ऐसी भी होते हैं जो साफ-साफ बताते हैं कि जातक किसी ना किसी कारण से विदेश यात्रा अवश्य करेगा। कारण कुछ भी हो सकता है। इन खास योगों में कई बार एक से अधिक कारण भी दिए होते हैं।
उदाहरण के लिए लग्नेश सप्तम भाव में हो तो भी जातक विदेश जा कर रह सकता है। यह काफी प्रभावशाली योग है जिसके चलते जातक के विदेश जाने की संभावना को कोई नहीं काट सकता।
आखिरी योग में राहु एवं चंद्रमा का संबंध बताया गया है। ज्योतिषियों के अनुसार जातक की कुंडली में स्थित राहु और चन्द्रमा का संबंध यदि बने और यह संबंध कुंडली के किसी भी भाव में क्यों ना हो... जातक को अपनी दशा में विदेश या जन्म स्थान से दूर ले कर जा सकता है।
इन सभी योगों के साथ-साथ कुंडली में अच्छी दशा होना अनिवार्य है, अन्यथा यह योग या तो फलीभूत नहीं होंगे या फिर जातक को विदेश जाने पर हानि और अपमान का सामना करना पड़ सकता है।
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