नक्षत्रों की सहायता से खोई हुई वस्तु का पता लगाए
सात -सात नक्षत्रों के चार समूह में २८ नक्षत्रों को बांटकर इन्हे अंध, मन्द लोचन ,मध्य लोचन और सुलोचन कहते है। नक्षत्रों की नेत्रअनुरूप जो संज्ञा होती है उसके अनुरुप प्रश्न का फल विचारा जाता है।
प्रथम समूह द्वितीय समूह तृतीय समूह चतुर्थ समूह
रोहिणी मृगशिरा आर्द्रा पुनर्वसु
पुष्य अश्लेषा मघा पूर्वाफाल्गुनी
उत्तर्फाल्गुणी हस्त चित्रा स्वाति
विशाखा अनुराधा ज्येष्ठा मुला
पूर्वषाडा उत्तरषाडा अभिजित श्रवण
धनिष्ठा शतभिषा पूर्वभाद्रपद उत्तरभाद्रपद
रेवती अश्विनी भरणी कृतिका
प्रथम समूह के नक्षत्रों का नेत्र अंधा होता है, इसलिए इन्हे अँधा नक्षत्र कहते है। इन नक्षत्रों में खोई वास्तु शीग्र मिल जाती है। सम्भवतः वास्तु की प्राप्ति पूर्व दिशा से होती है।
द्वितीय समूह के नक्षत्रों का नेत्र मंद होने के कारन इन्हे मन्द लोचन नक्षत्र कहते है। इन नक्षत्रों में खोई वास्तु यत्न करने पर उत्तर या दक्षिण दिशा से मिल जाती है।
तृतीय समूह के नक्षत्रों का नेत्र मध्य होने के कारन इन्हे मध्य लोचन नक्षत्र कहते है। इन नक्षत्रों में खोई वास्तु का पता चल जाता है , परन्तु मिल नहीं पाती।
चतुर्थ समूह के नक्षत्रों का नेत्र अच्छे होने के कारन इन्हे सुलोचन नक्षत्र कहते है। इन नक्षत्रों में खोई वास्तु कदापि नहीं मिल पाती ।
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