राहू-चंद्रमा के योग का फल—
1. प्रथम भाव- में हो तो खर्च दोष, दाँत का देरी से आना एवं धन संचय का योग बनता है।
2. द्वितीय भाव- में खुद के परिश्रम से धन प्राप्त करना, खाने के शौकीन होना एवं बचपन में कष्ट पाने का योग बनता है।
3. तृतीय भाव- में राहू-चंद्र की युति से शांत प्रकृति वाले, प्रसिद्धि पाने वाले एवं दाहिने कान में तकलीफ की संभावना आती है।
4. चतुर्थ भाव- में जन्मभूमि से दूर जाना पड़ता है, मेहनत से प्रगति करते हैं । दान की प्रवृत्ति अधिक होती है।राकेश गुप्ता
5. पंचम भाव- में राहू-चंद्र का ग्रहण जातक को बुद्धिमान, ईश्वर भक्त और कामी बनाता है।
6. छठे भाव- में शरीर निरोगी रहता है। शत्रु बहुत उत्पन्न होते हैं, लेकिन जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं। मातृपक्ष की चिंता होती है।
7. सप्तम भाव- में ग्रहण योग दाम्पत्य जीवन को अच्छा करता है। व्यापार में हानि का योग बनता है, पलायनवादी दृष्टिकोण को जन्म देता है।
8. आठवें भाव- में राहू-चंद्र की युति से अल्पायु में प्रसिद्धि मिलती है, स्त्री से धन प्राप्त होता है, आर्थिक हानि उठाना पड़ती है।
9. नौवें भाव- में संतान की प्रगति होती है, लंबे प्रवास का योग बनता है, धार्मिक कार्य करते हैं और आलस्य आता है।
10. दशम भाव- में योगी, हल्का व्यापार करने वाला एवं सामाजिक कार्य में संलग्नता का फल देता है।
11. ग्यारहवें भाव- में चंद्र-राहू की युति काम से प्रसिद्धि दिलाती है। अनैतिक तरीके से धन
एकत्र करने पर परेशानी उठाना पड़ती है। आँख या कान के रोग उत्पन्न होते हैं।
12. बारहवें भाव- में इस योग का फल कुशल व्यवसायी के रूप में मिलनसारिता के रूप में एवं दाम्पत्य जीवन में तनाव की स्थिति उत्पन्न करता है
3. तृतीय भाव- में राहू-चंद्र की युति से शांत प्रकृति वाले, प्रसिद्धि पाने वाले एवं दाहिने कान में तकलीफ की संभावना आती है।
4. चतुर्थ भाव- में जन्मभूमि से दूर जाना पड़ता है, मेहनत से प्रगति करते हैं । दान की प्रवृत्ति अधिक होती है।राकेश गुप्ता
5. पंचम भाव- में राहू-चंद्र का ग्रहण जातक को बुद्धिमान, ईश्वर भक्त और कामी बनाता है।
6. छठे भाव- में शरीर निरोगी रहता है। शत्रु बहुत उत्पन्न होते हैं, लेकिन जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं। मातृपक्ष की चिंता होती है।
7. सप्तम भाव- में ग्रहण योग दाम्पत्य जीवन को अच्छा करता है। व्यापार में हानि का योग बनता है, पलायनवादी दृष्टिकोण को जन्म देता है।
8. आठवें भाव- में राहू-चंद्र की युति से अल्पायु में प्रसिद्धि मिलती है, स्त्री से धन प्राप्त होता है, आर्थिक हानि उठाना पड़ती है।
9. नौवें भाव- में संतान की प्रगति होती है, लंबे प्रवास का योग बनता है, धार्मिक कार्य करते हैं और आलस्य आता है।
10. दशम भाव- में योगी, हल्का व्यापार करने वाला एवं सामाजिक कार्य में संलग्नता का फल देता है।
11. ग्यारहवें भाव- में चंद्र-राहू की युति काम से प्रसिद्धि दिलाती है। अनैतिक तरीके से धन
एकत्र करने पर परेशानी उठाना पड़ती है। आँख या कान के रोग उत्पन्न होते हैं।
12. बारहवें भाव- में इस योग का फल कुशल व्यवसायी के रूप में मिलनसारिता के रूप में एवं दाम्पत्य जीवन में तनाव की स्थिति उत्पन्न करता है
Comments
Post a Comment