कुंडली में कुछ प्रसिद्ध एवं प्रमुख योग

  • गोल योग - यदि सूर्यादि सभी ग्रह ( राहु - केतु को छोड़कर ) एक ही भाव ( राशि ) में हो,तो गोल नामक योग होता है।  इस योग के फलस्वरूप जातक चंचल बुद्धि, उच्च विद्या में विघ्न, निति नीतियों का विचार न करने वाला, अपना लक्ष्य सिद्ध करने में कुशल, कठोर  व हिंसक कार्यो में रूचि, गुप्त युक्तियों में प्रवीण होता हे।  ऐसा जातक गुप्तचर विभाग, पुलिस अथवा सेना के कार्यो में सफल होता है। 
  • युग योग - यदि जन्मकुंडी में ( राहु - केतु को छोड़कर ) सभी सात ग्रह  दो भावो ( २ राशि ) में ही स्थित हो, तो यह योग बनता हे, इस योग में जन्म लेने वाले जातक का जीवन अत्यन्त संघर्ष एवं कठिनाइयों से भरा होता है। ऐसा जातक चंचल स्वभाव वाला, मदिरा, तम्बाकू आदि व्यसन में लगा हुआ, धर्म कार्यो से विमुख तथा आर्थिक द्रष्टि से परेशान रहने वाला होता है, संतान आदि का सुख भी कम ही मिलता है। 
  • शूल योग - यदि कुंडली में तीन भावो में ( ३ राशि ) में ( राहु - केतु को छोड़ कर ) ही सात गृह  से शूल योग बनता है।  इस योग में जन्मा जातक साहसी, दयालु, परोपकारी किन्तु कुछ क्रोधी, कठोर एवं तीक्ष्ण स्वभाव का किन्तु कभी आलसी स्वभाव वाला, राजकर्मचारी और आर्थिक चिंताओं व  धन सम्बन्धी कार्यो में व्यस्त रहने वाला होता है। ऐसा जातक विरोध पक्ष के दिल में कांटे की तरह चुभता है। ऐसा जातक स्वाभिमानी, स्वार्थी , कई बार क्रोध में बना बनाया काम बिगाड़ने वाला होता है। 
  • केदार योग - यदि कुंडली में चार भावो में ( ४ राशि ) ही सात ग्रह  ( राहु केतु को छोड़ कर ) पड़े हो तो केदार नमक योग बनता हे, इस योग में उत्त्पन जातक सत्यवादी, परोपकारी, धनवान, चंचल  स्वभाव वाला, ऐश्वर्यवान, उच्च प्रतिष्ठित, बंधू - बांधवों का हितकर, कृषि आदि कार्यो में रूचि, बहुत जनो के लिए उपयोगी व  बहुजनोपयोगी वस्तु का निर्माण करने वाला एवं  सुख साधनों से संपन्न होता है। 
  • वीणा योग - कुंडली में सूर्यादि सभी ग्रह  ( राहु केतु को छोड़कर ) यदि सात भावो ( ७ राशि ) में स्थित हो तो , वीणा  योग बनता हे, इस योग में उत्त्पन जातक व्यवहार कुशल, संगीत,कला ,साहित्य एवं  गुढ़ शास्त्रों व विद्या में रूचि रखने वाला, विभिन्न शास्त्रों द्वारा धन अर्जन करने वाला, सुशील स्त्री, कार्य कुशल, भूमि, वाहन आदि सुखो से संपन्न होता हे, राजनीति व विदेशी कार्यो के क्षेत्र में भी सफलता की सम्भावना है। 
  • रज्जू योग - कुंडली में यदि सभी गृह ( राहु केतु को छोड़कर ) यदि चर  राशि में हो तो रज्जू योग का निर्माण करते है। इस योग वाला जातक भ्रमणशील अर्थात घूमने - फिरने का शौकीन, सुन्दर व्यक्तित्व, धनोपार्जन के लिए देश - विदेश में जाकर लाभान्वित होने वाला तथा स्थान परिवर्तन में विशेष उन्नति प्राप्त करने वाला होता है। 
  • मूसल योग - कुंडली में  सभी ग्रह( राहु केतु को छोड़कर ) स्थिर राशि में हो, तो मूसल योग होता हे। इसके फलस्वरूप जातक विद्वान्, सुप्रसिद्ध, उच्च विद्या प्राप्त, सुप्रतिष्ठित,तेजस्वी, धन - सम्पदा,स्त्री, वाहन, एवं संतान आदि सुखो से साधन संपन्न व्यक्ति होता हे, ऐसा जातक उच्च प्रतिष्ठित, शासनाधिकारी भी हो सकता है।   

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